पुणे में CA की मौत पर अखिलेश ने सरकार पर कसा तंज- बोले हर इम्प्लायी दबाव में है, यह आर्थिक नीतियों की नाकामी है

महाराष्ट्र के पुणे में 26 साल की सीए की मौत के मामले ने तूल पकड़ लिया है. देश भर में लोग इसकी चर्चा कर रहे हैं. युवती अर्न्स्ट एंड यंग (ईवाई) में चार्टेड अकाउंटेंट थी. उसकी मां ने कंपनी के मालिक को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि उनकी बेटी से इतना काम लिया कि वह तनाव में आ गई. उसके ऊपर लगातार ज्यादा काम का प्रेशर डाला जा रहा था. जिससे काम के बोझ में दबी उनकी बेटी की मौत हो गई. अब यह पत्र सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. जिसको लेकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सरकार को घेरा है.

उन्होंने ने X पर पोस्ट करके लिखा है- ‘Work-life balance’ का संतुलित अनुपात किसी भी देश के विकास का एक मानक होता है. पुणे में एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी में काम करने वाली एक युवती की काम के तनाव से हुई मृत्यु और उस संदर्भ में उसकी माँ का लिखा हुआ भावुक पत्र देश भर के युवक-युवतियों को झकझोर गया है. ये किसी एक कंपनी या सरकार के किसी एक विभाग की बात नहीं बल्कि कहीं थोड़े ज़्यादा, कहीं थोड़े कम, हर जगह लगभग एक-से ही प्रतिकूल हालात हैं.

देश की सरकार से लेकर कॉरपोरेट जगत तक को इस पत्र को एक चेतावनी और सलाह के रूप में लेना चाहिए. यदि काम की दशाएँ और परिस्थितियाँ ही अनुकूल नहीं होंगी तो परफॉरमेंस और रिज़ल्ट्स कैसे अनुकूल होंगे. इस संदर्भ में नियम-क़ानून से अधिक आर्थिक हालातों को सुधारने की ज़रूरत है.

सच तो ये है कि जिस प्रकार बेरोज़गारी है और काम व कारोबार सरकार की ग़लत नीतियों और बेतहाशा टैक्स की वजह से मंदी और घटती माँग का शिकार हुआ है, उससे व्यापारिक घाटे की ओर बढ़ते कारोबार पर कम-से-कम इम्प्लॉयिज़ से अधिक-से-अधिक काम करवाये जाने का ज़बरदस्त दबाव है. ऊपर-से-लेकर नीचे तक हर इम्प्लायी एक-दूसरे के दबाव में है. बड़े संदर्भों में देखा जाए तो दरअसल इस दबाव-तनाव का मूल कारण आर्थिक नीतियों की नाकामी है.

सरकार जिस दिन अपने को दोषी मानकर बदलाव लाएगी, सकारात्मक आर्थिक नीतियाँ बनाएगी, टैक्स सिस्टम और रेट को शोषणकारी न बनाकर लॉजिकल बनाएगी, वर्किंग कंडीशन्स को टेंशन फ़्री बनाएगी, उस दिन से सरकारी कर्मचारियों से लेकर काम-कारोबार-कॉरपोरेट जगत के इम्प्लॉयिज़ तक के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन दिखाई देने लगेंगे.

जब देश की मेंटल हेल्थ अच्छी होगी तभी तरक़्क़ी होगी. सरकार को इस संदर्भ में सबसे पहले अपनी सोच बदलनी होगी और काम करने के तरीक़ों को भी, जहाँ ज़्यादा-से-ज़्यादा घंटे काम करने का दिखावटी पैमाना नहीं बल्कि अंत में परिणाम क्या निकला, ये आधार होना चाहिए

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