ऐतिहासिक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन हुआ सम्पन्न

सोनभद्र। मधुरिमा साहित्य गोष्ठी द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का ५७ वां वर्ष अपने ऐतिहासिकता को संजोकर शिखर रूपी साहित्य साधक के कल्पना को साकार करते हुए अपने बुलन्दियों पर पहुंचकर हिन्दी जगत को आलोकित कर गया। रावर्ट्सगंज का राजा तेजबली शाह क्लब मैदान रविवार को कविता,गीत,गजल, मुक्तक, छंद व शायरी की शानदार प्रस्तुतियों से गुलजार रहा देश व प्रदेश के जाने- माने कवि जहां देश के दर्द से लोगों को रूबरू कराते रहे वहीं राष्ट्रवाद से लेकर हास्य, व्यंग व श्रृंगार के गीतों में डूबकर श्रोता गोते लगाते रहे।
मधुरिमा साहित्य गोष्ठी के तत्वावधान में विगत ५७ वर्षों से अनवरत अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का सफल आयोजन करते आ रहे संस्था के निदेशक अजय शेखर के मौजूदगी में सभाजीत द्विवेदी “प्रखर” की अध्यक्षता व ओज के कवि कमलेश राजहंस के सफल संचालन में जगदीश पंथी के वाणी वन्दना से कवि सम्मेलन प्रारम्भ हुआ जिसमें बतौर मुख्य अतिथि भूपेश चौबे विधायक रावर्ट्सगंज (सदर) व विशिष्ट अतिथि के रूप में अपर जिलाधिकारी योगेन्द्र बहादुर सिंह एवं जिला विकास अधिकारी रामबाबू त्रिपाठी मौजूद रहे। कार्यक्रम का सफल संयोजन संस्था के उप निदेशक आशुतोष पाण्डेय “मुन्ना” ने किया।
आयोजन को आगे बढ़ाते हुए सर्व प्रथम माटी के गीतकार ईश्वर विरागी ने मुरली धर की तान बजायें गीता ज्ञान सुनाएं हम, अमर सपूतों से महामंत्र ले गीत वतन के गायें हम सुनाकर समां बांध दिया वहीं वाराणसी से आये नरसिंह साहसी ने खून चुसो न गरीबों के मदतगार बनो सुनाकर जनमानस का दर्द बयां किया तो प्रदुम्न त्रिपाठी ने राष्ट्रीय एकता से जोड़ते हुए प्यार मिल्लत की बात करते है, सबके इज्जत की बात करते हैं सुनाकर माहौल को खुशनुमा बना दिया। वाराणसी से आये धर्म प्रकाश मिश्र ने सर्प वंशो लिबास के रूप में, सज्जनों का आस्तीन मिले की दमदार प्रस्तुति से श्रोताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया तो सोंनांचल की माटी से प्रभात सिंह चन्देल ने हैदराबाद व उन्नाव में मानवता को शर्मसार कर देने वाली घटना पर दम तोड़ गयी माँ की ममता अरमान पिता के बिखर गये, सुख गयी आंगन की तुलसी सब बाग बगीचे उजड़ गये की प्रस्तुति से देश की बेटियों के साथ- साथ परिजनों का दर्द बयां किया तो मिर्जापुर से आयी कवियित्री विभा सिंह ने कभी शाहिल कभी कश्ती कभी पतवार हो जाऊं, किसी के वास्ते यह प्यार बस खिलौना है सुनाकर खूब तालियां बटोरी वहीं हास्य कवि जयराम सोनी ने सोन माटी से जोड़कर पराये मेहमानों का कद्र करते हैं सुनाकर श्रोताओं को हंसाया।
विहार के धरती से आये शंकर कैमरी ने वफादार कह के मुकरते नहीं, कफन ओढ़ लेते हैं मरते नहीं, शहीदों का जिसमे लहू जल रहा है, ऐसे उस दिये का उजाला न बेंचो की शानदार प्रस्तुति से कवि सम्मेलन को ऊंचाइयों प्रदान की तो अशोक तिवारी ने दिलो दिमाग से अना की दीवार गिराकर, जीता हूं कई जंग हथियार डालकर सुनाया वहीं जाहिल “सुल्तानपूरी” की प्रस्तुति इक पुलिस वाले ने हमसे, मार खायी मुफ्त में थाने गये, ऐसा किया फितरत ने इशारा, रात को साढ़े तीन बजे पर खूब ठहाके लगे।
वाराणसी से आयी कवियित्री पूनम श्रीवास्तव ने माहौल को श्रृंगार व प्यार की ओर मोड़ते हुए दिल मे तुम्हारा ही गम रख लिया, हमने उल्फत का तेरे भरम रख लिया कि प्रस्तुति से श्रोताओं को प्यार के सागर में गोते लगाने पर मजबूर कर दिया वही सलीम शिवालवी ने जिन्दगी नर्कसा बना देगा, आबरू खाक में मिला देगा पर जमकर तालियां बटोरी।
छतरपुर से आये अभिराम पाठक ने राष्ट्रवाद पर अपनी प्रस्तुति शेखर सुभाष के जवानियों का शौर्य तेज, वक्त ने जो देखा उस वक्त को प्रणाम है और पहली बार कोई मर्द चढ़ा है शूली पर, भारत माँ का कोई हमदर्द चढ़ा है शूली पर सुनकर समूचे आयोजन को देश भक्ति के रंग में रंग दिया।
छतरपुर से आये अभिराम पाठक ने राष्ट्रवाद पर अपनी प्रस्तुति शेखर सुभाष के जवानियों का शौर्य तेज, वक्त ने जो देखा उस वक्त को प्रणाम है और पहली बार कोई मर्द चढ़ा है शूली पर, भारत माँ का कोई हमदर्द चढ़ा है शूली पर सुनकर समूचे आयोजन को देश भक्ति के रंग में रंग दिया। वहीं दिलीप सिंह “दीपक” ने बताओ मेरा हक अदा कब करोगे सुनाया तो शमीम गाजीपुरी ने सबा गुजरना तो मेरा पयाम कह देना, गुजर रही है जो मुझपे तमाम कह देना, मिले मिले न मिले वो तो कोई बात नही, तुम उनके शहर को मेरा सलाम कह देना की पेशकश से माहौल में इत्र घोल दिया।
अयोध्या से चलकर आये यमुना प्रसाद उपाध्याय ने किसी भी साख पर पत्ता नही है, शजर तो है मगर साया नही है, बगावत बस बगावत की जरूरत है, ये मेरी राय है फतवा नही है और मेरे जिगर में खंजर उतार दे, यहां जो आंख वाले है उन्हें दर्पण नही मिलता की प्रस्तुति से रात्रि की मध्य रेखा को पार कर प्रात की ओर बढ़ रहे आयोजन को शिखर पर पहुंचा दिया वहीं देवरिया से चलकर आये मनमोहन मिश्र ने नही आसान है फिर भी वफा की राह पर चलना, इसी का नाम जीवन है कभी उगना कभी ढलना और गीत का मेरे जो हर पेज है, दर्द का मेरे दस्तावेज है कि प्रस्तुति से कविता को नयी ऊंचाई दी।
मंच का संचालन कर रहे ओज के कवि कमलेश मिश्र राजहंस ने अश्कों पे सियासत के होता नही यकीन, घड़ियाल के कभी आँशु नही बहते, गरीबी, तंगदस्ती, भुखमरी देखी नही जाती, लुटेरे लीडरों की लीडरी देखी नही जाती सुनाकर ब्ययवस्था पर प्रहार किया तो माटी की भाषा के गीतकार जगदीश पंथी ने सुप्रसिद्ध गीत रुनुक झुनुक बाजै पायल गोरी तोर पउँआ, बड़ा निक लागे ननद तोर गउँआ की मोहक प्रस्तुति से श्रोताओं को गुन गुनाने पर मजबूर कर दिया।
अखिल भारतीय कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे जौनपुर से आये सभाजीत द्विवेदी “प्रखर” ने अध्यक्षीय काब्यपाठ करते हुए देश, काल व समाज मे ब्याप्त बुराइयों पर करारा व्यंग करते हुए सियासत की मंडियों में इन्शान बिक गया, अनुसूचित जाति के हनुमान हो गये की प्रस्तुति के साथ ही विगत ५८ वर्षों से हो रहे इस आयोजन के सफलता के पश्चात स्थगन की घोषणा करते हुए मधुरिमा साहित्य गोष्ठी को हिन्दी काब्य व साहित्य मंच की गरिमा करार देते हुए इसकी ऐतिहासिकता पर प्रकाश डाला।
संस्था के उप निदेशक आशुतोष पाण्डेय “मुन्ना” ने आभार ब्यक्त करते हुए कहा कि यह आयोजन सोंनांचल वासियों का आयोजन है जिसे लोगों ने सदैव अपना प्यार दिया है और उम्मीद करता हूँ कि आगे भी इसी तरह स्नेह, प्यार व सहयोग मिलता रहेगा और जन जन के सहयोग से मधुरिमा साहित्य गोष्ठी साहित्य यात्रा में सतत कीर्तिमान स्थापित करती रहेगी।