पेयजल के अभाव व प्रदूषण के चलते मां नही बनना चाहती महिलाएं।

सोनभद्र। सरकार चाहे किसी की भी रही हो मगर हर सरकार में भागीरथ प्रयास दिखाकर शुद्ध जल मुहैया कराने के लिए करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा दिए जाते हैं लेकिन सोनभद्र वासियों को आज तक शुद्ध जल नहीं उपलब्ध कराया जा सका।विकास के नाम पर सरकारें किस तरह लोगों की जिंदगियों के साथ खिलवाड़ करती आ रही है जहां जनपद सोनभद्र के दक्षिणांचल का इलाका अभिशप्त हो चुका है जहां जन्म लेना ही लोगों के लिए अभिशाप बन गया। इन इलाकों में पिछले तीन दशक से भी अधिक समय से लोग शुद्ध पानी के लिए तरस रहे हैं।
शुद्ध पानी की आस में एक पीढ़ी गुजर गई लेकिन आज तक लोगों को भागीरथ नहीं मिला जो प्रयास कर लोगों के घरों तक शुद्ध जल पहुंचा सके ।बिहार, झारखण्ड, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ चार प्रदेशों से घिरे जनपद सोनभद्र को ऊर्जा नगरी के नाम से भी जाना जाता है जो प्रदेश में दूसरा सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले जनपद की सूची में शामिल है 4.मार्च 1989 को जनपद सोनभद्र, मिर्जापुर से अलग होकर एक नया जिला बना जिला बनने के बाद लोगों को अपना भविष्य दिखने लगा, लोग नए जनपद के विकास में अपनी पूरी भागीदारी देने लगे । बड़े-बड़े कल कारखाने व खनन की उपलब्धता ने जल्द ही जनपद सोनभद्र को सूबे के दूसरे नम्बर का कमाऊ जनपद की सूची में शामिल कर लिया । लेकिन जनपद के हालात जस के तस बने रहे।
इसी विकास की आंधी ने जनपद के लगभग 269 गांव के लोगों को विकलांग कर दिया । इन गांवों में लोगों को शुद्ध पानी मिलना दूभर हो गया । हर ग्रामीण शासन-प्रशासन की तरफ निगाह गड़ाए देखने लगा कि शायद इस कलयुग में कोई भागीरथ बनकर उनके लिए शुद्ध जल पहुंचाएगा । लेकिन उनकी यह सोच एक पीढ़ी गुजार दी लेकिन कोई भागीरथ नहीं आया । बल्कि उसके जगह ठेकेदार आये जो अपना अपना प्रोजेक्ट बनाकर सरकार से शुद्ध पानी देने के लिए करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा दिए । आलम यह है कि इन गांवों में रहने वाले हर एक व्यक्ति चाहे वह बच्चा हो, बूढ़ा हो या फिर जवान सभी को फ्लोराइड नामक बीमारी ने जकड़ लिया । दांतों से शुरू होने वाली यह बीमारी धीरे-धीरे लोगों को इस कदर जकड़ लिया कि लोग विकलांग होने लगे । असहनीय दर्द व बेजान शरीर को लेकर सैकड़ों लोग खाट पर जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं ।विकास खण्ड म्योरपुर के रोहनिया डागर की रहने वाली 20 वर्षीय बुधनी अपाहिज लड़की जन्म से ऐसी नहीं थी लेकिन शुद्ध पानी का दावा करने वाली सरकारों ने इसे शुद्ध पानी तक मुहैया नहीं करा सकी और इस लड़की का धीरे-धीरे विकास रुक गया और फ्लोराइड नामक बीमारी की जद में आकर अपंग हो गयी । लड़की की माँ रामरती कहती हैं कि यदि पता रहता तो जन्म ही नहीं देती । अब तो सब भगवान भरोसे ही हैं ऐसा नहीं कि इन अभिशप्त गांवों के बारे में आसपास क्षेत्रों में लोगों को नहीं पता हैं आलम यह है कि इन गांवों में न कोई बाप अपनी लड़की देना चाहता है और न कोई इस गांव की लड़की को अपनी घर की बहू बनाने को तैयार होता है । ग्रामीणों का कहना है कि कई बार तो रिश्तेदारों के घर पर रखकर लड़की को दिखना पड़ता है और तथ्य को छिपाकर नाबालिक उम्र में ही शादी कर देनी पड़ती है ताकि इस भयंकर बीमारी से उसे बचाया जा सके ग्रामीणों का कहना है कि बाहर की लड़कियों को बहु बनाकर लाना बेहद कठिन हो गया है । अब कोई बाप जल्द अपनी बेटी की शादी इन गांवों में करना नहीं चाहता और कर भी देता है तो इन हालातों को देखकर महिलाएं अब मां बनने के नाम से डरती हैं । ऐसे में आगे वंश बढ़ाना मुश्किल हो गया है ।
वहीं कुछ ग्रामीणों का कहना है कि यदि सरकार शुद्ध जल नहीं दे पा रही है तो कहीं जमीन देकर बसा दे ताकि आगे की पीढ़ी को बचाया जा सके । फ्लोरोसिस नामक गम्भीर बीमारी पर शासन प्रशासन कितनी गम्भीर है, यह उनके द्वारा दिये गए आरटीआई से पता चलता है । जहां एक तरफ सोनभद्र के सीएमओ ने माना कि 269 गांवों में फ्लोराइड है वहीं प्रदेश सरकार में बैठे अफसरों को इस तरह की किसी जानकारी के बारे में पता तक नहीं ।
सीएमओ का मानना है कि सरकार को शुद्ध जल मुहैया कराना चाहिए । उनका कहना है कि सरकार की कई परियोजनाएं चल रही हैं जो ग्रामीणों को शुद्ध जल मुहैया कराने की दिशा में कारगर साबित हुआ है। वहीं इस मुद्दे को लेकर मानवाधिकार संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं ने मानवाधिकार आयोग में लिखा पढ़ी की है । उनका मानना है कि मानवाधिकार से ही इसका हल निकलेगा । सामाजिक कार्यकर्ता बंटी श्रीवास्तव बताते है की फ्लोराइड को लेकर दो आरटीआई ने प्रदेश सरकार की पोल खोल दी । आरटीआई में जहां सोनभद्र के सीएमओ ने फ्लोराइड से 269 गाँवों को प्रभावित बताया है वही प्रदेश स्तर पर स्वास्थ्य विभाग ने ऐसी किसी जानकारी से इनकार किया है । फ्लोरोसिस नामक बीमारी जहां एक तरफ ग्रामीण विकलांग हो रहे हैं वहीं प्रदेश सरकार में बैठे हुक्मरानों को जानकारी न होना चिंता का विषय है । फ्लोरोसिस का मुद्दा मानवाधिकार आयोग में पहुंचने के बाद लोगों में एक उम्मीद जगी है । अब देखने वाली बात यह है कि इम्फलैटिक्स जैसी गंभीर बीमारी की तर्ज पर फ्लोरोसिस नामक बीमारी का क्या हल निकलता है ।